मूल कर्तव्य क्या है
व्यक्ति के विकास के लिए अधिकार और कर्तव्य दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। वस्तुतः एक कर्तव्य पालन से व्यक्ति के अधिकारों की प्राप्ति होती है। भारत के संविधान में अधिकार को मूल रूप से विद्यमान हैं परंतु नागरिकों के मूल कर्तव्यों को स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश के आधार पर संविधान के 42 वें संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान के भाग 4 ए तथा अनुच्छेद 51 ए में जोड़ा गया है। भारतीय नागरिकों के लिए कर्तव्य के चार्टर का उद्देश्य “लोगों की मनोवृति, आचार व्यवहार और विचारों को परिवर्तित कर क्रांति को शांतिपूर्ण ढंग से पूरा करना है।” बस तुझे भारतीय संविधान में मूल कर्तव्यों की प्रेरणा पूर्व सोवियत संघ (रूस) के संविधान से लिया गया है।
संविधान में उल्लिखित मूल कर्तव्य कौन-कौन से हैं?
संविधान के अनुच्छेद 51 ए के अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह-
- संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करें।
- स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखें और उनका पालन करें।
- भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण बनाए रखें।
- देश की रक्षा करें और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करें।
- भारत के सभी नागरिकों में समरसता और समान भाईचारे की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा और प्रदेश अथवा वर्ग आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं तथा धारणाओं का परित्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध है।
- हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझें और उनका परीक्षण करें।
- प्राकृतिक पर्यावरण जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी पर्वत तथा वन्य जीव है उनकी रक्षा करें और उनका संवर्धन करें तथा प्राणी मात्र के प्रति दया का भाव रखें।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद तथा ज्ञानार्जन और सुधार की भावना का विकास करें।
- सार्वजनिक संपत्तियों को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहें।
- व्यक्तिगत तथा सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का निरंतर प्रयास करें जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊंचाइयों को हासिल कर सके।
- अभिभावकों का यह कर्तव्य होगा कि दे अपने 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के पूर्ण अवसर दें।
नोट- संविधान का 11वां मौलिक कर्तव्य 86 वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम 2002 द्वारा अनुच्छेद 51 ए में जोड़ा गया है।
सरदार स्वर्ण सिंह समिति द्वारा संविधान में 8 मूल कर्तव्यों की संस्कृति की गई थी परंतु 42 वें संविधान संशोधन द्वारा दस मूल कर्तव्य जोड़े गए थे।
मूल कर्तव्य संविधान के अनुच्छेद 29 (1) में निहित मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के साथ सामंजस्य में है, जिसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के अपने समुदाय के प्रति मूल कर्तव्य होते हैं। और इन कर्तव्य के पालन में ही उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और पूर्ण विकास संभव है।
मौलिक कर्तव्यों का क्रियान्वयन कैसे हुआ?
मूल कर्तव्य, मौलिक अधिकारों की भांति ना तो वाद योग्य है और ना ही साधारण जनता के लिए बाध्यकारी हैं साथ ही इनका उल्लंघन होने पर दंड की भी व्यवस्था संविधान में नहीं है। भारत सरकार ने प्रत्यक्ष से मौलिक कर्तव्य को बाध्यकारी नहीं बनाया है परंतु अप्रत्यक्ष रूप से इनका क्रियान्वयन भारत सरकार की विभिन्न नीतियों, कानूनों और कार्यक्रमों द्वारा किया जाता है जो निम्न प्रकार से है-
- देश की एकता और अखंडता के विरुद्ध कार्य करने पर नागरिकता अधिनियम 1955 के तहत किसी भी भारतीय नागरिक की नागरिकता को छीना जा सकता है। संविधान के सोलहवें संशोधन अधिनियम अनुच्छेद 19 (2) मैं यह व्यवस्था की गई है कि यदि कोई भारतीय एकता और अखंडता के विरुद्ध विचार व्यक्त करता है तो उसे संविधान द्वारा दंडित किया जा सकता है।
- संविधान के अनुच्छेद 23 (2) दो में यह प्रावधान किया गया है कि राष्ट्र की रक्षा हेतु राज्य अपने नागरिकों की अनिवार्य सेवाएं ले सकता है।
- राष्ट्रीय गौरव पूर्ण अपराध अधिनियम 1971 में राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान करने पर संविधान में दंड की व्यवस्था की गई है।
- पर्यावरण संरक्षण के लिए सरकार ने पर्यावरण प्रदूषण रोकथाम अधिनियम, जल प्रदूषण रोकथाम अधिनियम पारित किए। सरकार ने वनों को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय वन्य नीति 1952 तथा राष्ट्रीय वन्य नीति 1988 बनाई। भारत सरकार ने वनों की रक्षा तथा उनकी वृद्धि के लिए सामाजिक वानिकी अधिनियम 1976 और संयुक्त वन प्रबंधन 1990 जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम भी शुरू किए हैं।
- भारत सरकार ने महिला सशक्तिकरण के लिए 1987 तथा सन 2001 की महिला सशक्तिकरण नीति पारित की है और स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं में महिलाओं की 33 फ़ीसदी आरक्षण की व्यवस्था की है।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण और मानववाद के विकास के लिए सरकार माननीय और वैज्ञानिक शिक्षा प्रदान कर रही है जिससे भारत के लोग अपने कर्तव्य का सही से पालन कर सकें।
- आम नागरिकों को अहिंसा की कर्तव्य पालन करने के लिए सरकार गांधीवादी दर्शन का प्रचार प्रसार कर रही है।
मौलिक कर्तव्यों का नकारात्मक पक्ष क्या है
भारत के संविधान में सम्मिलित सभी मूल कर्तव्यों की आलोचना निम्नलिखित आधारों पर की जा सकती है।
- मौलिक कर्तव्यों के क्रियान्वयन की विधि पर संविधान में कोई चर्चा नहीं है।
- मौलिक कर्तव्य बाध्यकारी नहीं है, इनके उपेक्षा अथवा उल्लंघन पर संविधान में कोई दंड का प्रावधान नहीं है।
- मौलिक कर्तव्य जैसे अनिवार्य मतदान, कर भुगतान का इसमें कोई स्थान नहीं है।
- कुछ मौलिक कर्तव्यों की भाषा इतनी जटिल है जिन्हें आम नागरिकों द्वारा समझ पाना बहुत कठिन है जैसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण और समन्वित संस्कृति आदि।
- कुछ मौलिक कर्तव्य अनावश्यक है जिनका कोई औचित्य नहीं है ऐसे प्राणिमात्र के प्रति दया भाव रखना।
- कुछ मूल कर्तव्य का दोहराव है जैसे
- भारत की संप्रभुता एकता और अखंडता की रक्षा करें।
- देश की रक्षा करें दोनों का अर्थ एक ही है।
भारत में मौलिक कर्तव्यों का क्या महत्व है।
उपरोक्त नकारात्मक बिंदुओं के बाद भी मौलिक कर्तव्यों का महत्वपूर्ण स्थान है। संविधान में मौलिक कर्तव्यों के अंकित किए जाने से यह नागरिक को सदैव इस नल कराते रहेंगे कि नागरिकों के अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्य भी है। जिनका उन्हें पालन करना है। महात्मा गांधी ने भी अधिकार और कर्तव्य को एक दूसरे का पूरक बताया था। वर्तमान भारतीय लोकतांत्रिक कल्याणकारी राज्य में कर्तव्यों का महत्व निम्नलिखित बिन्दुओं के अंतर्गत समझा जा सकता है।
- संविधान में मूल कर्तव्य की स्थापना से अधिकारों और मूल कर्तव्य में स्वस्थ संतुलन स्थापित होता है।
- राज्य के नीति निदेशक तत्वों की भांति इनका उपयोग भी संविधान की व्याख्या के लिए किया जा सकता है। विधायक का विधि निर्माण करते समय इन को आधार बना सकती है। कार्यपालिका अपने कार्यों का औचित्य सिद्ध करने के लिए इनका सहारा ले सकती है।
- यह कर्तव्य भारतीय संस्कृति के अनुकूल हैं और यह कर्तव्य भारतीय जनता में एकता और बंता की भावना को बढ़ाते हैं।
- मौलिक कर्तव्य व्यक्तियों में सामाजिक जिम्मेदारी की भावना का संचार करते हैं जिससे राष्ट्रीय भावना ने वृद्धि होती है।
वर्मा समिति की मूल कर्तव्य के बारे में प्रमुख सिफारिशें
भारत सरकार ने मौलिक कर्तव्यों के क्रियान्वयन हेतु 2001 में जे एस वर्मा समिति का गठन किया था इस समिति ने अपनी प्रस्तुत रिपोर्ट में मौलिक कर्तव्यों के क्रियान्वयन हेतु प्रचार प्रसार पर बल दिया था।जे एस वर्मा समिति (1999) ने कुछ मूल कर्तव्यों की पहचान और क्रियान्वयन लिए कानूनी प्रावधानों को लागू करने की सिफारिशें की थी।
- वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 दुर्लभ एवं लुप्तप्राय प्रजातियों के व्यापार पर प्रतिबंध लगाता है।
- राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम 1971। यह भारत के संविधान राष्ट्रीय ध्वज, तथा राष्ट्रगान के अनादर का निवारण करता है।
- सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955 जाति एवं धर्म से संबंधित अपराधों का दंड की व्यवस्था लागू करता है।
- भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) यह उद्घोष करती है कि राष्ट्रीय अखंडता के लिए पूर्वाग्रह से प्रेरित अभयारोपण और अभिकथन दंडात्मक अपराध होगा।
Post a Comment
0 Comments