अपठित गद्यांश कक्षा 10 रीट परीक्षा यूपी शिक्षक पात्रता परीक्षा
सभ्यता के विकास के साथ-साथ मनुष्य की आवश्यकता है बड़ी और क्रमशः अधिकाधिक जीव जगत उसके संपर्क में आए जीव जगत के अधिक विस्तृत रूप से उसका साक्षात्कार हुआ।
हम संपर्क और साक्षात्कार के विस्तार के साथ मनुष्य के अनुभवों में वृद्धि हुई और उसकी चेतना अधिकाधिक विस्तृत और परिमार्जित हो गई धीरे-धीरे उस समय स्मृति इच्छा कामना आदि शक्तियों का आविर्भाव हुआ और विवेक बुद्धि का विकास हुआ। आरंभ में तो मनुष्य अपने आसपास के दृश्यों से ही परिचित था और उसकी इच्छा शक्ति भी वहीं तक सीमित थी, क्रमशः वह अदृश्य और अद्भुत वस्तुओं की कल्पना करने लगा। उसकी इच्छाओं और अभिलाषा ओं का क्षेत्र भी बड़ा और साथ ही उसमें सुंदर-असुंदर सत असत तथा उचित अनुचित की धारणा भी बद्धमूल हुई समय के साथ चेतना के अधिक विकसित होने के कारण उसकी बोध वृत्ति सुव्यवस्थित तथा परिपुष्ट होती गई।
मनुष्य के संस्कारों और वृतियां का मनुष्य समाज से घनिष्ठ संबंध स्थापित होता गया। इन संस्कारों और व्रतियों को ही मानव सभ्यता का मानदंड माना जाने लगा। जिस समाज की ये वृतियां जितनी अधिक व्यापक और समन्वय पूर्ण होती है वह समाज उतना ही समुन्नत समझा जाता है।
1 प्रस्तुत गद्यांश का उचित शीर्षक बताइए-
समाज का विकास
सभ्यता का विकास
मानव का विकास
मानव चेतना का विकास
2 मनुष्य की चेतना कैसे विकसित होती गई?
संपर्क अनुभव और आवश्यकता से
परिवर्तन की यात्रा से
उसके द्वारा अनुसंधान से
विकास की संभावना से
3 अभिलाषा का तात्पर्य है-
मन की इच्छा
महत्वाकांक्षा
मानसिक इच्छा
इनमें से कोई नहीं
4 आविर्भाव शब्द का अर्थ है-
जागृत होना
प्रकट होना
आना
उन्नति
5 आलोच्य गद्यांश में इच्छा शब्द का क्या आशय है-
वास्तविक जरूरत
मनोरथ
कामना
इनमें से कोई नहीं
6 किसी भी समाज को उन्नत समाज कब माना जाता है-
जब वह अपने आप को पूर्ण विकसित कर ले
जब वह अपने आप को प्रतिष्ठित करले
जब उसे विकास की स्थिति में सहायक समझा जाए
जब उसकी वृतियां व्यापक और समन्वय पूर्वक हों
7 मानव सभ्यता का मानदंड क्या है-
परिवर्तन
सामाजिक वृतियां और संस्कार
औद्योगिकरण
सामाजिकता
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