गायत्री मंत्र किस वेद से लिया गया है
गायत्री मंत्र को सबसे पहले ऋग्वेद में रचा गया है। गायत्री मंत्र के रचयिता ऋषि विश्वामित्र हैं तथा गायत्री मंत्र के देवता सविता(सवित्र) हैं। वैसे तो यह मंत्र विश्वामित्र के इस सूक्त के 18 मंत्रों में केवल एक है, किंतु अर्थ की दृष्टि से इसकी महिमा का अनुभव आरंभ में ही ऋषियों द्वारा कर लिया था और समस्त ऋग्वेद के 10 सहस्र मंत्रों में इस मंत्र के अर्थ की व्यंजना सबसे अधिक की गई। इस मंत्र में कुल चौबीस अक्षर हैं। उनमें आठ-आठ अक्षरों के तीन चरण हैं। परन्तु ब्राह्मण ग्रंथों में एवम् कालांतर के समस्त संस्कृत साहित्य में इन अक्षरों से पहले तीन व्याहृतियाँ और उनसे पूर्व प्रणव या ओंकार को जोड़कर गायत्री मंत्र का पूरा स्वरूप इस प्रकार स्थिर हुआ है।
ॐ भूर्भव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं, भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
मंत्र के इस रूप को महर्षि मनु ने सप्रणवा, सव्याहृतिका गायत्री कहा है। और जाप करने के लिए भी गायत्री मंत्र का विधान किया है।
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